भक्तिकालीन हिन्दी कविता की सामान्य विशेषताएँ
हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह काल लगभग सन् 1375 से 1700 ईस्वी तक माना जाता है। इस युग में हिन्दी कविता का केन्द्र बिन्दु ईश्वर भक्ति, मानवता और प्रेम रहा। कवियों ने भक्ति को जीवन का सर्वोच्च मार्ग माना और अपने काव्य के माध्यम से समाज में आध्यात्मिक चेतना जागृत की।
1. भक्ति भावना की प्रधानता
भक्तिकाल की कविताओं का मूल विषय ईश्वर भक्ति है। कवियों ने ईश्वर को प्राप्त करने के लिए प्रेम और श्रद्धा को सबसे प्रमुख माना। इस काल में निर्गुण और सगुण दोनों प्रकार की भक्ति दिखाई देती है। कबीर, दादू, रैदास आदि ने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया, जबकि तुलसीदास, सूरदास और मीराबाई ने सगुण भक्ति की परंपरा को आगे बढ़ाया।
2. भावात्मकता और हृदय की सरलता
इस काल की कविताएँ हृदय से निकले हुए भावों की सच्ची अभिव्यक्ति हैं। कवि अपने ईश्वर से प्रेम करते हैं, उनसे शिकायत करते हैं और अपने अनुभवों को सहज भाषा में व्यक्त करते हैं। यह भावनाएँ अत्यंत मार्मिक और जनसामान्य के हृदय को स्पर्श करने वाली होती हैं।
3. भाषा की सरलता और जनभाषा का प्रयोग
भक्तिकालीन कवियों ने संस्कृत की कठिन भाषा छोड़कर जनमानस की भाषा अपनाई। अवधी, ब्रज, खड़ी बोली और राजस्थानी जैसी बोलियों में रचनाएँ लिखीं गईं ताकि सामान्य जनता भी उन्हें समझ सके। तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ और सूरदास की ‘सूरसागर’ इसका सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
4. समाज सुधार और समानता की भावना
इस युग के कवियों ने जाति-पांति, ऊँच-नीच और बाह्य आडंबरों का विरोध किया। कबीर और रैदास जैसे कवियों ने मानव-मानव में भेदभाव मिटाने का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि सच्ची भक्ति ईश्वर के प्रति प्रेम और मानवता में है, न कि कर्मकांडों में।
5. नैतिकता और सदाचार का प्रचार
भक्तिकालीन कविताएँ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षाओं से भी भरपूर हैं। कवियों ने सत्य, प्रेम, क्षमा, त्याग और सेवा को जीवन का मूल बताया। तुलसीदास और सूरदास की रचनाएँ समाज को आचार, धर्म और नीति की शिक्षा देती हैं।
6. काव्य की आत्मीयता और संगीतात्मकता
भक्तिकालीन कविताओं में संगीत का विशेष प्रभाव है। भक्ति रस के साथ-साथ इन कविताओं में लय और छंद का सुंदर संयोजन मिलता है। इसलिए आज भी इनके पद, भजन और चौपाइयाँ गायी जाती हैं।
7. ईश्वर के विविध रूपों का चित्रण
भक्तिकालीन कवियों ने अपने आराध्य ईश्वर को विभिन्न रूपों में चित्रित किया। तुलसीदास के लिए राम, सूरदास के लिए कृष्ण, मीराबाई के लिए गिरधर गोपाल और कबीर के लिए निराकार ब्रह्म सर्वोच्च सत्ता हैं।
8. मानवता और प्रेम का संदेश
इस युग की कविताओं ने मानवता को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। कवियों ने प्रेम को सर्वोच्च धर्म माना और सभी प्राणियों में ईश्वर का वास बताया।
निष्कर्ष
भक्तिकालीन हिन्दी कविता भारतीय समाज और संस्कृति का प्रतिबिंब है। यह केवल धार्मिक युग नहीं बल्कि भावनाओं, समानता, मानवता और सच्चे प्रेम का युग है। इस काल के कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को दिशा दी और जीवन के आध्यात्मिक मूल्यों को स्थिर किया।
संदर्भ:
- हिन्दी साहित्य का इतिहास — आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- भक्तिकालीन साहित्य — हजारीप्रसाद द्विवेदी
- https://hi.wikipedia.org/wiki/भक्तिकाल
- https://askpur.com/bhaktikalin-hindi-kavita-ki-samanya-visheshtayein/